ग्राम मोहगांव में वर्ष 1936 से निरंतर श्रीराम लीला का भव्य आयोजन किया जा रहा है, जो अब पूरे क्षेत्र में धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक चेतना और सामाजिक समरसता का प्रतीक बन चुका है। श्रीराम नवमी से आरंभ होकर 11 दिनों तक चलने वाला यह आयोजन रामायण के विभिन्न प्रसंगों का सजीव मंचन प्रस्तुत करता है, जिसे देखने आसपास के गांवों से भी भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
रामायण के प्रमुख प्रसंगों का जीवंत मंचन
इस वर्ष भी श्रीराम लीला के 11 दिवसीय आयोजन में रामायण के प्रमुख कांडों का मंचन किया जा रहा है। प्रथम दिन श्रीराम जन्म, द्वितीय दिन यज्ञ रक्षा, तृतीय दिन श्रीराम विवाह, चतुर्थ दिन वनवास और भरत मिलन जैसे अयोध्या कांड के प्रसंग प्रस्तुत किए गए। आगे के दिनों में सीता हरण, बाली वध, कुंभकरण एवं इंद्रजीत वध से लेकर रावण वध व श्रीराम के राज्याभिषेक तक के प्रसंग मंचित किए जाएंगे।
2017 में हुआ भव्य मंदिर प्राण प्रतिष्ठा
ग्राम मोहगांव के सामूहिक सहयोग की एक मिसाल 2017 में देखने को मिली, जब श्रीराम-जानकी मंदिर का निर्माण एवं प्राण प्रतिष्ठा समारोह संपन्न हुआ। इस पावन कार्य के लिए गांव के सभी कर्मचारियों ने अपने एक माह का वेतन समर्पित किया, वहीं किसानों ने प्रति एकड़ ₹1400 का योगदान देकर मंदिर निर्माण में भागीदारी निभाई।
गांव में सात्विक जीवनचर्या और समर्पण
पूरे आयोजन के दौरान ग्रामवासी सात्विक जीवन अपनाते हैं और सामूहिक रूप से धार्मिक अनुशासन का पालन करते हैं। गांव के वरिष्ठ नागरिकों से लेकर युवा कलाकारों तक, सभी आयोजन में तन-मन से सहभागी बनते हैं।
मुख्य पात्रों में स्थानीय कलाकारों की भागीदारी
श्रीराम लीला के मंचन में दीपक बढ़ाई, बलिराम मतारी (श्रीराम), मुकेश बारीक (सीता), प्रणव प्रधान (लक्ष्मण), सीताकांत प्रधान (हनुमान), उमाशंकर प्रधान (रावण), निरंजन यादव (जनक), रमेश प्रधान, अरुण कर, योगेश कुमार बढ़ाई समेत कई प्रतिभाशाली स्थानीय कलाकारों ने भूमिका निभाई। हास्य कलाकारों व वाद्य कलाकारों की टीम ने भी समां बांध दिया।
संपूर्ण आयोजन में ग्रामवासियों की सहभागिता
आयोजन की लाइटिंग, संगीत, मंच सज्जा, भोजन व्यवस्था सहित सभी व्यवस्थाएं ग्रामवासियों के सामूहिक प्रयासों से संचालित होती हैं। चिंतामणि प्रधान, वीरेंद्र बढ़ाई, कुलदीप साहू, प्रीतम कर, गोल्डिक बढ़ाई समेत अनेक युवाओं ने जिम्मेदारियाँ संभालीं।
रामलीला बनी एक प्रेरणा
ग्राम मोहगांव की यह परंपरा आज की पीढ़ी के लिए एक प्रेरणास्रोत है कि किस प्रकार धार्मिक आस्था, समाज सेवा और सांस्कृतिक मूल्यों को एक मंच पर जीवित रखा जा सकता हैं।