सिरको/छेरछेरा: नई फसल की खुशी और दानशीलता का पर्व

छत्तीसगढ़ में छेरछेरा त्योहार: नई फसल की खुशी का उत्सव

छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परंपरा में रचे-बसे छेरछेरा त्योहार को नई फसल की खुशी में मनाया जाता है। यह त्योहार किसानों की सालभर की मेहनत और उनके द्वारा उगाई गई फसल के घर पहुंचने की खुशी का प्रतीक है।

दानशीलता और परंपरा का संगम
इस दिन किसान अपनी फसल का एक हिस्सा दान करते हैं, जो कृषि प्रधान समाज में दानशीलता और सह-अस्तित्व की भावना को बढ़ावा देता है। बच्चे और युवा “छेरछेरा! छेरछेरा!!” के नारे लगाते हुए गांव के घर-घर जाकर अनाज मांगते हैं।

पकवान और भंडारे की परंपरा
त्योहार के दिन घरों में पारंपरिक व्यंजन जैसे अरसा रोटी,आलू गुंडा, बारा,आलू चाप, भजिया, खीर, और खिचड़ा बनाए जाते हैं। कई जगहों पर सामूहिक भंडारे का आयोजन होता है, जहां खीर और खिचड़ा का विशेष रूप से वितरण किया जाता है।

खरीदारी का दिन
छेरछेरा के दिन मुर्रा, लाई, तिल के लड्डू, और अन्य पारंपरिक मिठाइयों की खूब बिक्री होती है। स्थानीय बाजारों में रौनक और चहल-पहल देखते ही बनती है।

विश्राम और सामूहिकता का दिन
इस त्योहार पर हर कामकाज बंद रहता है। लोग इस दिन का उपयोग अपने परिवार और समुदाय के साथ खुशी मनाने और परंपराओं को आगे बढ़ाने में करते हैं।

छेरछेरा त्योहार न केवल नई फसल की खुशी का प्रतीक है, बल्कि यह समाज में परस्पर सहयोग और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने का संदेश भी देता है।

2 thoughts on “सिरको/छेरछेरा: नई फसल की खुशी और दानशीलता का पर्व”

  1. अरे भाई सिरको का गली लाईट पर भी फोकस करो राम राम

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