शासकीय भूमि पर अवैध डामर प्लांट लगाने का मामला उजागर, पर्यावरण और राजस्व को नुकसान की आशंका

बसना
बसना विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत साल्हेझरिया के सीमावर्ती क्षेत्र ग्राम फुलवारी (उड़ीसा सीमा से सटा) में शासकीय भूमि पर अवैधानिक रूप से डामर प्लांट लगाए जाने का मामला सामने आया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार खसरा नंबर 88, रकबा 36.66 हेक्टेयर शासकीय भूमि पर तेजराम पटेल, निवासी फुलवारी ने अवैध कब्जा कर रखा है। इसी भूमि पर बिलासपुर की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा डामर प्लांट लगाया जा रहा है।

जानकारी के अनुसार ग्राम पंचायत साल्हेझरिया द्वारा ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित कर तेजराम पटेल को तीन माह के लिए प्लांट संचालन की अस्थायी स्वीकृति दी गई थी। जबकि शासकीय घास भूमि को औद्योगिक उपयोग हेतु देने का अधिकार पंचायत को नहीं है। प्लांट से निर्मित सामग्री उड़ीसा भेजी जाएगी, जिससे छत्तीसगढ़ की भूमि का उपयोग कर दूसरे राज्य को लाभ पहुंचाने की बात सामने आ रही है।

स्थानीय विरोध और पर्यावरणीय चिंता
ग्रामीणों ने बताया कि ठेकेदार और तेजराम पटेल ने ग्रामवासियों को गुमराह कर यह कार्य प्रारंभ किया है। कथित रूप से ग्रामीणों को पैसे का प्रलोभन देकर पर्यावरणीय क्षति और राजस्व नुकसान की अनदेखी की जा रही है। भूमि पर लगे वृक्षों को काटकर समतलीकरण कर दिया गया है, जिससे पर्यावरणीय संकट बढ़ गया है। यह स्थान छत्तीसगढ़ को उड़ीसा से जोड़ने वाले मुख्य मार्ग पर स्थित है, जहां यातायात की आवाजाही अधिक है। ऐसे में प्लांट से निकलने वाला धुआं राहगीरों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

प्रशासनिक स्थिति और विरोधाभास
सूत्रों की मानें तो एसडीएम मनोज कुमार खांडे द्वारा आवेदन के आधार पर प्लांट की अस्थायी स्वीकृति दी गई, वहीं तहसीलदार कार्यालय से उक्त भूमि पर स्थगन आदेश जारी किया गया है। इसके बावजूद प्लांट का निर्माण तेज़ी से जारी है, जिससे प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं।

प्रशासनिक प्रतिक्रियाएं

“ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित कर तीन माह के लिए स्वीकृति दी गई थी।”
हेमलता बारीक, सरपंच, ग्राम पंचायत साल्हेझरिया

“शासकीय भूमि पर अवैध प्लांट लगाए जाने की शिकायत मिली है, जिस पर तहसील कार्यालय से स्थगन आदेश जारी कर दिया गया है।”
सुश्री ममता ठाकुर, तहसीलदार, बसना

निष्कर्ष:
इस मामले ने न केवल प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और शासकीय भूमि की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता भी खड़ी कर दी है। यदि समय रहते इस पर रोक नहीं लगाई गई तो शासन को राजस्व के साथ-साथ पर्यावरणीय हानि भी उठानी पड़ सकती है।

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